Not known Factual Statements About Shodashi

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ज्येष्ठाङ्गबाहुहृत्कण्ठकटिपादनिवासिनीम् ॥७॥

Goddess Tripura Sundari Devi, also known as Shodashi or Lalita, is depicted having a rich iconography that symbolizes her different attributes and powers. Her divine kind is commonly portrayed as a wonderful young girl, embodying the supreme splendor and grace on the universe.

Each individual fight that Tripura Sundari fought is a testament to her may well and also the protecting nature of the divine feminine. Her legends carry on to inspire devotion and they are integral on the cultural and spiritual tapestry of Hinduism.

कन्दर्पे शान्तदर्पे त्रिनयननयनज्योतिषा देववृन्दैः

Shodashi’s Electrical power fosters empathy and kindness, reminding devotees to solution Many others with understanding and compassion. This benefit encourages harmonious relationships, supporting a loving method of interactions and fostering unity in relatives, friendships, and Neighborhood.

The Saptamatrika worship is especially emphasised for all those searching for powers of Handle and rule, together with for the people aspiring to spiritual liberation.

यह शक्ति वास्तव में त्रिशक्ति स्वरूपा है। षोडशी त्रिपुर सुन्दरी साधना कितनी महान साधना है। इसके बारे में ‘वामकेश्वर तंत्र’ में लिखा है जो व्यक्ति यह साधना जिस मनोभाव से करता है, उसका वह मनोभाव पूर्ण होता है। काम की इच्छा रखने वाला व्यक्ति पूर्ण शक्ति प्राप्त करता है, धन की इच्छा रखने वाला पूर्ण धन प्राप्त करता है, विद्या की इच्छा रखने वाला विद्या प्राप्त करता है, यश की इच्छा रखने वाला यश प्राप्त करता है, पुत्र की इच्छा रखने वाला पुत्र प्राप्त करता है, कन्या श्रेष्ठ पति को प्राप्त करती है, इसकी साधना से more info मूर्ख भी ज्ञान प्राप्त करता है, हीन भी गति प्राप्त करता है।

संरक्षार्थमुपागताऽभिरसकृन्नित्याभिधाभिर्मुदा ।

Her Tale incorporates legendary battles from evil forces, emphasizing the triumph of excellent in excess of evil as well as the spiritual journey from ignorance to enlightenment.

श्वेतपद्मासनारूढां शुद्धस्फटिकसन्निभाम् ।

लक्ष्या या पुण्यजालैर्गुरुवरचरणाम्भोजसेवाविशेषाद्-

वाह्याद्याभिरुपाश्रितं च दशभिर्मुद्राभिरुद्भासितम् ।

तिथि — किसी भी मास की अष्टमी, पूर्णिमा और नवमी का दिवस भी इसके लिए श्रेष्ठ कहा गया है जो व्यक्ति इन दिनों में भी इस साधना को सम्पन्न नहीं कर सके, वह व्यक्ति किसी भी शुक्रवार को यह साधना सम्पन्न कर सकते है।

स्थेमानं प्रापयन्ती निजगुणविभवैः सर्वथा व्याप्य विश्वम् ।

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